प्रेमियों को बनाता है जिसके पानी में इश्क घुला हुआ है जहां पर हवाएं प्रेम के गीत सुनाती हो उसी चिनाब नदी पर एक ऐसा पुल बना है जिसने वतन से इश्क का नया फलसफा गढ़ दिया है जिसने पूरी दुनिया के सामने एक मिसाल पेश की है जम्मू कश्मीर के सिर का ताज जिस पर पूरे हिंदू को नाज है और जिसके किस्से आने वाली पीढ़ियां सुना करेंगी
"चिनाब ब्रिज: फौलादी इरादों से बना, भारत की ऊंचाई का प्रतीक"
जम्मू में इस चेनाब नदी के ऊपर जो पुल बनने वाला है उसके सामने कुतुब मीनार और ईफिल टावर दोनों ही बौने नजर आएंगे बीच में जो नदी है चेनाब नदी उसे जोड़ने के लिए बीच में कई पिलर्स लगाए जाएंगे और उसी से जोड़ते हुए एक आर्ट जो है स्टील का वो बनेगा इन पीियर को बनाने के लिए ही 40 से 50 कि.मी लंबा एक रास्ता बनाया चिनाब ब्रिज के लगभग बीचोंबीच के खाली हिस्से में लगाया जा रहा है जम्मू में बना यह पुल विश्व का सबसे ऊंचा रेलवे पुल बनेगा लेकिन यह कामयाबी सिर्फ ट्रायल रन के सफल होने की नहीं थी यह कामयाबी थी भारतीय रेल की एक और इतिहास रच देने की आजादी के 78 सालों के बाद भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर इतिहास में एक सुनहरा अध्याय जुड़ने जा रहा है चुनाब नदी पर बना यह वही पुल है जो देश के फौलादी इरादों जितना ऊंचा है तकनीक का अजूबा जो आज तक इस देश में कभी नहीं हुआ जैसा पुल अभी तक देश में नहीं बना और इतना ऊंचा रेलवे पुल दुनिया में अब तक नहीं बना रिकॉर्ड्स जिसकी नींव में भरे हैं और 20 सालों की मेहनत के बाद यह पुल धरती पर जन्नत की मन्नत बनकर पूरी हुई है तूफानों से टकरा कर खड़ा हुआ है यह पुल दुनिया में जो कभी नहीं हुआ वैसा इस चिनाब पुल में हुआ है यह वो पुल है जो हिंदुस्तान को ना सिर्फ सामरिक ताकत देगा बल्कि कश्मीर से कन्याकुमारी को एक सूत्र में पिरो देगा
पाताल से आसमान तक की रोमांचक दास्तान"
आज हम आपको इस पुल में बसी वो कहानी सुनाएंगे जो आपको कहीं नहीं मिलेगी ना कहीं दिखेगी ना कभी बताई जाएगी जो दिख रहा है उससे कहीं ज्यादा जो झेला गया है मौसम और मुश्किल हालातों से लड़ा गया तब जाकर यह नायाब करिश्मा तैयार हुआ है चुनाव पुल का वो किस्सा जो इतिहास में अब दर्ज है जम्मू कश्मीर का रियासी जिला चिनाब घाटी में बसे बक्कल और कौड़ी गांव बीच में बहती चिनाब नदी और पाताल से लेकर आसमान तक पहुंचा विशाल चिनाब पुल इस बाहुबली पुल के बनने की रोमांचक कहानी आपको बताऊंगी उससे पहले दुनिया के सबसे ऊंचे रेल पुल का हिसाब किताब बता देते हैं
दुनिया का सबसे ऊंचा पुल, जिसने पहाड़ों को चीरकर इतिहास रचा"
चेनाब नदी के तल से 359 मीटर ऊपर बना यह पुल फ्रांस के एफिल टावर से 35 मीटर ऊंचा है दिल्ली के पांच कुतुब मीनार खड़े हो जाए इतनी ऊंचाई पर यूं समझिए कि चिनाब नदी से 100 मंजिला इमारत जितना ऊंचा बना है यह पुल 1315 मीटर लंबा है आधे चांद के जैसे पुल का यह जो आर्च उसे सीधे नापें तो 467 मीटर है जबकि आर्च में यानी गोलाई में 550 मीटर पुल जिस आर्च पर खड़ा है सिर्फ इसका वजन 10,619 मीट्रिक टन है दुनिया का सबसे ऊंचा पुल बनाने के लिए दो शुरुआती चुनौती थी एक तो यह इलाका भूकंप क्षेत्र के ज़ोन फाइव में आता है तो दूसरा यहां तक कि स्टील कंक्रीट लाने के लिए सड़क ताकि ट्रांसपोर्टेशन हो सके जब शुरू की गई थी तो यह लग रहा था कि यह पुल कैसे बनेगा लेकिन भारतीय रेलवे ने सारी कठिनाइयों को पार करते हुए इस पुल का निर्माण किया है इसमें माल जो सामान है इंजीनियरिंग का सामान रेल रेलवे है या कंक्रीट है उसके काफी सड़कें बनाई है जिनका कि फायदा यहां के लोगों को होगा पुल बनने के लिए घाटी में जो सबसे सही जगह चुनी गई वो यह थी लेकिन 43° से लेकर 77° तक के तीखे ढलान और इन पहाड़ों को काटकर काम करना दीवार पर पुल चिपकाने जितना कठिन था फिर भी चुनौतियों को पार करके पुल बना नायाब बना इसीलिए इसकी कहानी भी दुनिया तक जरूर पहुंचनी चाहिए और इसके लिए शुरू से शुरुआत करनी होगी
120 साल पुराने सपने को हकीकत में बदलने वाली इंजीनियरिंग की मिसाल
1898 में तब के महाराजा प्रताप सिंह ने जम्मू से कश्मीर तक सीधी रेल लाइन बिछाने का प्रस्ताव रखा था लेकिन अंग्रेजों ने इसे भारीभरकम खर्च के कारण खारिज कर दिया आज करीब 120 साल बाद मोदी सरकार ने घाटी तक ट्रेन से सीधे पहुंचने का सपना साकार किया है 2003 में वाजपेई सरकार ने प्रस्ताव को मंजूरी दी और 22 सालों के संघर्ष से पुलाबाद हुआ 2004 में परियोजना शुरू हुई कंस्ट्रक्शन शुरू होने से पहले 2006 तक यहां पहुंचने का कोई रास्ता नहीं था बस स्टैंड नहीं था ऑटो भी नहीं चलते थे घोड़े खच्चर कुछ नहीं सबसे पहले इस जगह तक आने के लिए दोनों तरफ सड़क बनाई गई बक्कल गांव की तरफ 5 कि.मी और कोरी गांव की ओर 3 कि.मी ताकि यहां पर आसानी से पहुंचा जा सके 2008 में निर्माण का ठेका दिया गया उसके बाद ट्रांसपोर्टेशन शुरू हुआ आप जरा सोचिए जहां ऑटो बस नहीं जाते थे वहां 35,000 टन स्टील का पुल बादलों के बीच जाकर बना दिया गया पुल जिन इस्पात के खंभों पर खड़ा है उसे बनाने के लिए मजबूत नीव की जरूरत थी और उसके लिए पहाड़ों को उस शेप में काटना पहला टास्क था इस इलाके के पहाड़ों को यंग माउंटेन कहा जाता है यानी वो पहाड़ जिनकी उम्र कम है जिसकी वजह से यहां की मिट्टी अलग तरह की और मुलायम है क्योंकि ढलान काफी खड़ी थी तो टॉप डाउन कंट्रोल ब्लास्टिंग मेथड का इस्तेमाल नीव बनाने के लिए किया गया जिसमें छोटे-छोटे कंट्रोल धमाके किए गए ताकि आसपास के पहाड़ों में कंपन कम से कम हो और पहाड़ियों को नुकसान ना पहुंचे जिसके बाद इलाके में हैवी मशीनरी एस्केवेटर्स ड्रैक हैमर्स डंपर्स ट्रैक माउंटेड रॉक ड्रिलिंग इक्विपमेंट और डोज़र्स यहां पर लाए गए हिमालय की पहाड़ियों में भूस्खलन का भी खतरा रहता है इसीलिए मिट्टी पहाड़ की जांच के बाद आईआईएससी बोर ने स्टॉप स्टेबलाइजेशन तकनीकी को डिजाइन किया जिसमें चट्टानों में स्टील की बोल्टिंग की गई शॉर्ट क्रिटिंग हुई यानी कि ढलानों को स्थिर रखने के लिए कंक्रीट का छिड़काव किया गया कंट्रोल सिस्टम में हमने एस्कावेशन हुआ है उसको प्रोटेक्शन सिस्टम कंट्रोल सिस्टम में हुआ प्रॉपर केयर लिया गया है ऑल दी मतलब इसमें हमने केबल एंकर्स भी यूज़ किया है यहां पे डीवीडी बार रॉक बोल्ट शॉर्ट ग्रिड बहुत सारे स्लोप का प्रोटेक्शन मेजर्स लिया है प्रॉपर मेथड ऑफ किया था स्टील स्ट्रक्चर से इसलिए सर्वे उसको दो टाइम दिन में किया जाता था ताकि हमने कोई क्योंकि यहां पे कोई फेलर की गुंजाइश रखना नहीं है पुल मतलब नदी के दो किनारे दोनों किनारों को जोड़ने मतलब इस आर्श में लगे स्टील के हिस्सों को जोड़ने के लिए एक मजबूत कन की जरूरत थी दुनिया का सबसे लंबा 915 मीटर यानी करीब 1 कि.मी लंबा कन लगाया गया जो 127 मीटर तक ऊंचा था 35 टन तक का स्टील उठाने में सक्षम स्कन से आर्च के एक-एक हिस्से को स्टेप बाय स्टेप जोड़ा गया जो करीब 10 से 12 मीटर लंबा था उसे उठाकर पुल पर फिट किया जाना था आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस पुल में 6 लाख नट बोल्ट लगे हुए हैं पहाड़ तैयार क्रेन तैयार अब बारी खुदाई की आई इसके लिए कोंकण रेलवे ने ऑन साइड वैलिडेशन करके खुदाई का काम पूरा किया ऑनसाइड वैलिडेशन मतलब रॉक या मिट्टी की जांच करके जियोलॉजिस्ट और जियो इंजीनियर की मदद से जरूरत पड़ने पर ऑन स्पॉट इंप्रूवमेंट किया गया जिससे बिना किसी फेलियर के खुदाई का काम पूरा हुआ एक ऑन साइड वैलिडेशन ऑफ द स्लोप्स को भी किया है जिसके कारण से नो फेलर इन द नॉर्मल मतलब एक लोकल फेलोर को भी हमने अलव नहीं किया फिर नीव डाली गई जो पीियर बनकर तैयार होना था वो 137 मीटर का था मतलब कुतुब मीनार के लगभग दो गुने के बराबर और इसका फाउंडेशन डाला गया 50 मीटर/ 36 मीटर मतलब आधे फुटबॉल के मैदान के बराबर पूरे पुल को बनाने में 300 मीट्रिक टन स्टील का इस्तेमाल हुआ जो एफिल टावर में इस्तेमाल स्टील से चार गुना ज्यादा है और इतनी स्टील का दो तिहाई हिस्सा इन पियर्स को बनाने में लगा स्टील फैब्रिकेशन में पहली बार पाउ यानी फेस्ड एरे अल्ट्रासोनिक टेस्टिंग तकनीकी का इस्तेमाल किया गया ताकि वेल्डिंग में क्रैक का पता लगाया जा सके पेयर से लेकर पुल के आर्च तक इसे जोड़ने के लिए खास तरह के ब्लास्ट प्रूफ स्टील का इस्तेमाल किया गया इतने बड़े पुल को जोड़ने के लिए जो वेल्डिंग की गई अगर उसे सीधे नापे तो 584 कि.मी लंबी वेल्डिंग की गई है जो जम्मू से नई दिल्ली के बीच की दूरी के बराबर है इतने बड़े प्रोजेक्ट के लिए यहीं पर वेल्डिंग सेंटर बनाया गया जिसमें 70% लोकल वर्क फोर्स को लगाकर यहां पर ट्रेनिंग दी गई क्योंकि यह लोग हालात से वाकिफ थे तो जब इस जगह का तापमान -20° तक पहुंच जाता था तब भी काम यहां पर चलता रहा और इतने ऊंचे ब्रिज पर चढ़कर काम करने के लिए जो हिम्मत चाहिए थी उनमें भी स्थानीय लोगों ने बेहतरीन काम किया
तूफानों के बीच इतिहास रचता भारत का इंजीनियरिंग चमत्कार
पीियर बना अर्ज के हिस्से का काम शुरू हुआ आज को 4 साल लगाकर केबल क्रेन की मदद से तैयार किया गया है जिसमें खूबसूरती ही नहीं मजबूती का भी पूरा ध्यान रखा गया है फिर आई तारीख 5 अप्रैल 2021 आधी रात से दिन के उजाले तक 1178 फीट की ऊंचाई पर हवा की स्पीड 150 कि.मी./ घंटा यानी तेज तूफान के बराबर जिस वक्त आर्च के आखिरी हिस्से को जोड़े जाने का मिशन शुरू हुआ अलाइनमेंट ठीक भी हो तब भी तेज हवा में सही जगह सेट करना बेहद चुनौती भरा था स्पेशल हाइड्रोलिक जैक की मदद से कन के जरिए पुल के बीच के हिस्से को जोड़ने में हमारे इंजीनियर्स को कामयाबी मिली एबीपी न्यूज़ इस ऐतिहासिक पल का गवाह बना इस समय जो दृश्य आप देख रहे हैं यह बेहद ऐतिहासिक क्षण है और इस समय चिनाब ब्रिज की क्लोजिंग का यह क्षण है इस सेगमेंट को क्राउन सेगमेंट कहा जाता है जो एक विशेष पल के लिए जो अंतिम सेगमेंट है वो क्राउन सेगमेंट इस समय लगाया जा रहा है चिनाब ब्रिज का क्लोजर हो चुका है यानी आज अपनी जगह पर लगभग आ गया है चिराग ब्रिज दर्शकों के देखते देखते पूरा किया गया है
पुल निर्माण में एक्सपेंशन जॉइंट और विंड फोर्स के महत्व पर विवरण
3200 लोगों की मजबूत टीम ने दिन रात एक करके काम किया तब जाकर 2022 तक पुल का काम
पूरा हुआ उसके बाद अगले 2 साल में डेक बनाने और उस पर रेल पटरी बिछाने का काम हुआ इसमें भी एक्सपेंशन जॉइन का इस्तेमाल किया गयाहै जिससे पूरा स्ट्रक्चर लचीला होता है मतलब रेलवे ट्रैक पूरी तरह से पुल के
स्ट्रक्चर से अलग है एक्सपेंशन जॉइंट की वजह से पुल पर मौसम या परिस्थितियों का जो दबाव पड़ता है उससे ट्रैक या उससे ऊपर गुजरने वाली ट्रेन को नुकसान होने की आशंका खत्म हो जाती है भूकंप के लिहाज से जरूर है उससे ज्यादा इसका विंड फोर्स है तो मेन गवर्निंग इसका विंड फोर्स है विंड प्रोनो जोन है इसलिए इसके जो बॉक्स है आज के टोटल में
ऑफस्ट्रीम में चार डाउनस्ट्रीम में चार है टोटल आठ बॉक्सेस को कंक्रीट के अंदर में फिल अप किया गया है तो इसमें क्या है कि विंड जो विंड के लिहाज से इसको डिजाइन मैक्सिमम है दो द हाइट इज मोर लेकिन इसके
अर्थ की जो विंड फोर्स के कारण से इसको वेट दिया गया है
भूकंप, बम और तूफान झेलने वाला भारत का बाहुबली पुल"
तरह से खड़ा रहेगा इस चिनाब पुल को 100 किमी/ घंटे की रफ्तार से ट्रेन चलाने के लिए डिजाइन किया गया है जबकि इतनी ऊंचाई पर हवा का दबाव बहुत ज्यादा होता है तो 266 किमी/ घंटे की हवा की गति को झेलने
लायक इसे बनाया गया है जोन फाइव में होने के कारण इसे इतना मजबूत बनाया गया कि यह आठ तीव्रता तक के भूकंप को भी झेल सके यानी गुजरात में आए भीषण भूकंप को भी यह झेल सकता है आप जब गर्ज में जाएंगे आर्च के ऊपर हवा बहुत तेज चलती है तो हवा को का इफेक्ट आर्ट्स पे नापने के लिए उसको मेजर करने के लिए कि कितना उससे फोर्स आ रहा है हमने कोपनगन में फोर्स टेक्नोलॉजी में इसका विंड टनल टेस्ट कराया था जिससे विंड के पैरामीटर्स निकाले गए उसके हिसाब से इसके विंड के अपर्चर बनाए गए जो कि विंड को हम मॉड्यूलेट कर सकें तो इसमें अगर आप लेंगे अर्थक्वेक के लिए नहीं विंड के लिए क्रेडिट बनता है
थी अब मोदी सरकार ने इस गैप को भी पूरा कर दिया है और इसी के बीच की अहम कड़ी है रियासी से संगलदान के बीच बना यह चना पुल क्योंकि नेशनल हाईवे 44 से कश्मीर घाटी तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता था जो
बर्फबारी होने पर बंद हो जाता था देश भर से आने वाली सैलानियों को कश्मीर जाने के लिए जम्मू तभी तक ही ट्रेन मिलती थी जहां से करीब 350 कि.मी बाय रोड जाना पड़ता था जिसमें 8 से 10 घंटे का समय लगता लेकिन इस पुल के बनने से कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरा देश रेल के रास्ते एक सूत्र में जुड़ जाएगा दरअसल चेनाब ब्रिज सिर्फ एक रेल पुल नहीं
है एक मिशन है कश्मीर की बर्फीली पहाड़ियों के बीच हिंद का परचम लहराने का
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